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Author: The Writewing Ink
२०१४ से २०२४ : लोकतंत्र की असली मजबूती के १० वर्ष
आज कल कुछ लोग ये बोलते हुए पाए जाते है की आज लोकतंत्र खतरे में है। उनके लिए मैं कुछ कहना चाहता हूँ। मुझे क्यों ऐसा लगता है की २०१४ के बाद लोकतंत्र को और मजबूत किया गया है। मैं एक आम नागरिक की नजर से इस बात की विवेचना करना चाहता हूँ।
सबसे पहले आपको मैं पुराने दिनों में ले जाना चाहता हूँ। मैं रायबरेली का रहने वाला हूँ। वही रायबरेली जिसको तो कुछ लोगो के हिसाब से लंदन होना चाहिए था। उसी रायबरेली में पले बढे एक बचपन से शुरुआत करना चाहता हूँ। किताबें विद्यार्थी जीवन की सबसे बड़ी मित्र होती हैं। और उन्ही मित्रो के जरिये उस समय एक विद्यार्थी प्रजातंत्र की परिभाषा याद कर रहा था।
“प्रजातंत्र जनता के लिए जनता के द्वारा शासन है “।
इसी प्रजातंत्र के परिवार से एक विद्यार्थी घर से ६ ७ किलोमीटर दूर विद्यालय से कंकड़ों वाली सड़क से वापस आते समय दिमाग में ये सोच रहा होता की ये जनता का कैसा साशन है की उसको रोज इतनी मेहनत करवाती है। क्या वह जनता नहीं है। खैर इन सवालों के जवाब न तो वो किताबे दे पाती और न ही वो प्रजातंत्र की परिभाषा। उस समय तो प्रजातंत्र का मतलब उस बच्चे को बस किताब में लिखे उस छोटा सा गद्य खंड ही था।
बचपन अब बड़ा होता है और अब उसने जनता को या तो लम्बी कतारों में पाया या फिर सरकारी कार्यलयों के परिधि के बाहर चक्कर लगाते हुए।बैंक में छोटे से छोटे काम के लिए कतार। किसानो को खाद के लिए कतार। ट्रैन में बैठने के लिए कतार। अस्पतालों के लिए कतार। गैस सिलिंडर के लिए तो इतनी बड़ी बड़ी कतारें लगती थी की कुछ लोग तो पहले से ही हिम्मत हार जाते थे।
एक आम इंसान को सरकारी कार्यलयों में जाने का मन नहीं करता था। किसी भी सरकारी अधिकारी से बात करते वक़्त वो जनता हाँथ बांधे खड़ी होती थी। अधिकारी ऐसे बाते सुनता था जैसे उसके सामने खड़ी वो जनता है ही नहीं या जनता को तुच्छ समझ कर वो उनकी बाते सुनते थे। बेचारी हाँथ जोड़े खड़ी जनता उसको ये पता ही नहीं था की किताबों में तो प्रजातंत्र कुछः और ही बताया गया है।
२०१४ में श्री नरेंद्र मोदी जी के आने के बाद मैंने प्रजातंत्र में जो बदलाव देखे है उससे मेरी प्रजातंत्र को लेकर धारणा बदल गयी।
अब हम प्रजातंत्र को जनता के लिए साशन बनाने की दिशा में बढ़ चुके है। मैं आपसे कुछ उदाहरण ही साझा करूँगा।
बात २०१३-१४ की है मैं पहली बार मैं गरीब रथ में बैठा। मैं AC ट्रैन में पहली बार बैठा था तो मुझे इस बात का पता नहीं था की कम्बल लेने के लिए आपको पैसे देने पड़ेंगे। सब लोग डिब्बे के बाहरी हिस्से में जाकर कम्बल लेकर आ रहे थे तो मैं भी चला गया। कम्बल बाटने वाले कर्मचारी ने पहले तो सुनाया मुझे की घर से क्यों नहीं लाये फिर बोला की अब कम्बल ख़तम हो गए। खैर कुछ पैसे लेने के बाद उसने कम्बल दे दिया।
अब हम सीधा २०२२ में आते हैं। मैं और मेरी पत्नी सहारनपुर जाने के लिए रायबरेली से रिजर्वेशन करवाया। अब हम लोगो को बछरावां स्टेशन नजदीक पड़ता तो ये तय किया की रायबरेली के एक स्टेशन आगे से ट्रैन पकड़ लेंगे। बछरावां स्टेशन में वातानुकूलित डिब्बों के सारे गेट बंद थे। क्यूंकि शायद वह से कोई रिजर्वेशन न रहा हो। हम लोग स्लीपर वाले डिब्बे में चढ़ गए। ट्रैन के टॉयलेट के पास खड़े हम दोनों। समझ नहीं आ रहा था की क्या करें। एक ट्वीट किया मैंने भारतीय रेलवे और रेल मंत्री को टैग करते हुए। आप यकीन मानिये २ मिनट के भीतर ही ट्रैन के टीटी साहब हम लोगों के सामने आये। और हमारी सीट तक छोड़ कर आये। ३ बार रेलवे की तरफ से कॉल आया की आपकी समस्या का निर्धारण हुआ की नहीं। आप यकीन मानिये उस समय मेरा विस्वास सरकार पर और सरकारी तंत्र पर बढ़ गया या यूँ कह ले की जनता के लिए शासन होते हुए मैं असलियत में देख रहा था। मेरे बस ये बोलने पे की सीट पर रखे हुए चद्दर गंदे लग रहे बिना किसी बहस के नया पैकेट आ जाता है तो ये जनता के लिए साशन है। शायद लोकतंत्र मजबूत हुआ है पहले की अपेछा।
दूसरा उदाहरण पासपोर्ट सेवा। २०१४ से पहले की बात करें तो असंभव सा लगता थ। मेरे जान पहचान के मित्र है उनको दफ्तर की तरफ से विदेश जाना था। बड़ा मौका था पर पासपोर्ट नहीं था। और हम लोग तो पहले वाली व्यवस्था ही समझ रहे थे की अब तो महीनो लगेंगे। पर फिर से एक ट्वीट आदरणीय सुषमा स्वराज जी और विदेश मंत्रालय। एक हफ्ते के अंदर पासपोर्ट आ गया। क्या ये जनता के लिए शासन नहीं है। क्या इसे लोकतंत्र को मजबूत करना नहीं कहते।
जनता को ये विस्वास होना की उसके एक ट्वीट से पूरा मंत्रालय उसके काम में लग जाता है तो इसे आप लोकतंत्र की मजबूती कहेंगे न की खतरा। विदेश में कही कोई फस जाता था तो बस एक ट्वीट और सरकार सुरक्षित वापस ले आती है क्या ये लोकतंत्र की मजबूती नहीं है।
मीलों दूर विदेश में फसे भारतीय को अगर ये विस्वास हो की भारत की सरकार उसके साथ खड़ी है तो ये लोकतंत्र को मजबूत बनाती है।
अगला उदहारण गैस सिलिंडर। मुझे याद है की गैस सिलिंडर लाने के लिए गैस स्टेशन पे लम्बी लाइन। २ ३ लग जाते थे कभी कभी। एक इंसान १० १५ किलोमीटर साइकिल चलकर सिलिंडर लेने जाता है और फिर लम्बी कतार में खड़ा होकर वापस आ जाता है की गैस ख़तम हो गयी। गरीब इंसान सरकारी शरारत का शिकार बन जाता था। अब जरा अभी का हाल देखिये आपको मात्र मोबाइल पे मिस्ड कॉल देना है गैस आपके घर में। अब लम्बी कतार नहीं लगती। लोकतंत्र को धुप में लम्बी कतारों में खड़ा होकर सुखना नहीं पड़ता। जब मात्र एक मिस्ड कॉल पे गैस आप के घर पहुंच जाती हो तो इसे आप लोक तंत्र को मजबूत होना ही कहेंगे।
मनरेगा में अपनी की हुई मजदूरी के पैसे पाने के लिए पहले गांव के गरीबों को ग्राम प्रधानों के घर के चक्कर लगाने पड़ते थे। और वह भी उसमे से कुछ हिस्सा ग्राम प्रधान रखते थे। आज अगर किसान सम्मान निधि सीधे किसानो के खाते में जाती है। सब्सिडी सीधे उपभोक्ता के खाते में जाती है। आयुष्मान भारत इतनी बड़ी स्वास्थ योजना। ये सारे कदम लोकतंत्र को मजबूत नहीं करते तो क्या करते है। क्या लोकतंत्र तब मजबूत था जब किसान खाद और बीज के पैसो के लिए दर दर भटकते थे। आज अगर उनको किसान सम्मान निधि मिलती है तो की ये लोकतंत्र की मजबूती नहीं है।
मुझे याद है मैं एक बार SBI की एक साखा में गया था यही कोई २०१० -११ में। केवल ATM कार्ड का आवेदन के लिए मुझे ३ ४ घंटे लगे। मन उठने लगता था सरकारी तंत्र से। फिर अभी २०२४ में मैं फिर से हिम्मत करके SBI की उसी शाखा में गया।। क्यूंकि २०१०-११ के बाद मैं वहा गया ही नहीं था। मैंने न तो इस बार लम्बी कतारें देखि और न बैंक कर्मचारियों की ग्राहकों के प्रति उदासीनता। सम्मान से बात करना। जल्दी जल्दी काम करना।
इस सरकार ने डिजिटल को ज्यादा बढ़ावा दिया। न सिर्फ बढ़ावा अपितु उसके के लिए आवश्यक तंत्र भी विकसित किया जिससे आम जनता को बहुत ज्यादा सहूलियत मिली। मुझे याद नहीं की मैं कब एटीएम की लाइन में लगा हूँ। सब्जी वाले के तराजू के पीछे हिस्से में चिपक QR कोड इस बात का सूचक है की लोकतंत्र मजबूत हो रहा है। सरकारी योजनाओं के नाम अब गांव में सिर्फ दीवालों में नहीं लिखे जाते अपितु उनको असली जामा पहना कर समाज के अंतिम व्यक्ति तक पहुंचाया जाता है।
ऑनलाइन बैंकिंग को बढ़ावा , और बहुत सारी सरकारी प्रक्रिया को ऑनलाइन कर देना इससे आम जनता को मिलने वाली सहूलियत क्या लोकतंत्र को मजबूत नहीं बनती। घर बैठे लाखों रुपये का लेन दे। सरकार को डिजिटल को बढ़ावा इसपे अलग से लिख सकते है।
पहले ट्रेनों को क्या जान बूझ कर गन्दा रखा जाता था। जो बदलाव मैंने भारतीय रेल में देखा वह अकल्पनीय है।
सरकारी अधिकारी से बात करते हुए अब विस्वास रहता है। अधिकारयों के मन में भी ये भय तो रहता है की अगर किसी ने ट्वीट कर दिया या फिर वीडियो बना के वायरल कर दिया तो उसे जवाब देना पड़ेगा। मैंने अनगिनत स्ट्रीट लाइटस को ऐसे ठीक होते देखा है। फोटो खींच कर ट्वीट कर दिया और अगले दिन कर्मचारी मैदान में दीखते थे। इसे आप एक क्रान्ति कह सकते है। लोकतंत्र की क्रान्ति।
अब जनता की आवाज को आप दबा नहीं सकते। मौजूदा सरकार ने बहुत सारे प्लेटफार्म दिए है अपनी आवाज सीधा सरकार तक पहुचनाने को।इससे लोकतंत्र की मजबूती बढ़ती है। वो जनता जो पिछली सरकारों में अपनी आवाज में बस प्रार्थना ही कर पाते थे आज वह मुखर होकर अपनी आवाज रख रही है। हाँ अब अगर इसको आप कहेंगे की काम करना पड़ रहा है तो जनता के काम तो आपको करने पड़ेंगे।
आज प्रधानमन्त्री किसी के ट्वीट का जवाब देते है या किसी को चिट्ठी लिखते है तो ये अनुभव होता है की ये सरकार हमारे लिए है
ऐसे बहुत से उदाहरण मैं गिनवा सकता हु। बदलाव तो हुआ है इस देश में पर वो संविधान बदलने को नहीं अपितु उसको और मजबूत करने के लिए।
समान नागरिक संहिता : भारत सरकार पर भारतीय लोकतंत्र का एक उधार
आजादी के बाद नेहरू सरकार भारतीय समाज में कई आमूलचूल परिवर्तन लाना चाहती थी। इसके लिए कई सारे सामाजिक सुधारों को संविधान का रूप देना चाहती थी। इन्ही में से एक सुधार था हिंदू कोड बिल। ये बिल अपने आप में कई कानूनों को समेटे हुए था। और इसमें एक था हिन्दू विवाह अधिनियम। हिन्दू समाज में शादी को लेकर संविधान में कुछ नियम जोड़े गए। उस समय के परिदृश्य को देखते हुए शायद ये जरूरी कदम था।
पर एक सवाल तो उस समय यह भी खड़ा हुआ की ये सारे कानून सिर्फ एक वर्ग के लोगों के लिए ही क्यूं। क्या ये नियम समाज के हर वर्ग के लोगों के लिए नहीं होना चाहिए। क्या उस समय की नेहरू सरकार मुस्लिमों को इस कानून के अंतर्गत लाने में डर या हिचकिचा रही थी। क्या उनको लग रहा था की हिन्दू समाज परिवर्तन आसानी से स्वीकार कर लेता है।
ये सोच कर ही कितना हास्यास्पद लगता है की एक देश में दो वर्गों के लिए दो कानून। एक वर्ग के लिए कानून संविधान निर्धारित करे और एक वर्ग के लिए पर्सनल लॉ बोर्ड।
खैर अभी बात विवाह कानूनों की चल रही है तो एक और उदाहरण आपके सामने रखते हैं। 1985 में न्यायालय द्वारा एक ऐतिहासिक फैसला आया जिसने भारत की राजनैतिक दिशा को बदल के रख दिया। 1978 में मध्यप्रदेश इंदौर की रहने वाली शाह बानो बेगम को उनके पति ने तलाक दे दिया। शाह बानो ने न्यायालय में अपने गुजारा भत्ता देने के लिए अर्जी लगाई। आज ये पढ़ कर अचरज हो रहा होगा की गुजारा भत्ता के लिए न्यायालय तक क्यों जाना पड़ा। पर इस्लाम में हर महीने गुजारा राशि देने का कोई प्रावधान नहीं है। विवाह के समय तय मेहर की रकम को ही गुजारा राशि माना जाता है।
न्यायालय ने शाह बानो के पति को हर महीने 500 रुपए देने का आदेश दिया।
सिर्फ मेहर की राशि चुकाने से पति का दायितव ख़तम नहीं होती। पर इस फैसले मुसलिम धर्म गुरुओं और संस्थाओं ने फैसले का विरोध किया।
जरा सोचिये शाह बानो जो की ६२ साल की महिला और ५ बच्चो की माँ है उनको पति ने घर से निकाल दिया और गजरा भत्ता की मांग पर तलाक दे दिया। ५ बच्चों के साथ शाह बानो अपना पालन पोषण करने के लिए दर दर भटकने को मजबूर थी। लिहाजा उन्होंने न्यायालय का दरवाजा खटखटया। उन्होने इन्साफ तो मिला पर उसकी अवधि बहुत ही कम थी।
सोचिये स्वतंत्र भारत के पहले प्रधानमंत्री नेहरू जी की सरकार के समय हिन्दू विवाह अधिनियम की जगह सिर्फ विवाह अधिनियम कानून आता तो क्या शाह बानो के जैसी हजारों या शायद लाखों महिलाओं के साथ ऐसा न हुआ होता। उन्हें गुजारा भत्ता के लिए दर दर की ठोकरे ना खानी पड़ती। पर बार अभी १९८६ राजीव गाँधी सरकार की हो रही है। इंदिरा गाँधी जी के हत्या के बाद प्रधानमन्त्री बने श्री राजीव गाँधी की ये पहली अग्नि परीक्षा थी। ये देखना था की क्या वो मुस्लिम समाज के विरोध को दरकिनार कर मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों के साथ खड़े रहेंगे। क्या राजीव गाँधी १९५२ में महिलाओं का जो वर्ग न्याय से वंचित रह गया था उसको न्याय देंगे।
पर ऐसा हुआ नहीं सरकार झुक गई। शरीयत को संविधान से ऊपर मानने वाले कट्टरपन्थीओं की आवाज तले डाब गई। वो राजीव गाँधी जो भारत के सबसे कम उम्र के युवा प्रधानमंत्री थे जिनसे नए भारत की उम्मीदें थी , जिहोने कंप्यूटर क्रान्ति और भ्रस्टाचार ख़तम करने की बात कही थी , समाज के हर वर्ग को साथ लेकर चलने की बात कही थी वो उम्मीदों को गहरा झटका लगा। सरकार ने कानून लाकर न्यायलय के निर्णय को बदल दिया।
शाह बानो फिर से असहाय हो गई। इस्लामिक कट्टरट्ता के आगे शाह बनो जैसी लाखों महिलाओं की आवाज दबा दी गई। क्या आज के भारत में अलग कानूनों की कोई जगह है। भारत विविधतता में एकता वाला राष्ट्र है। पर ये एकता किस कीमत पर। क्या सच्चे मायने में एकता को बनाये रखने के लिए सामनां नागरिक संहिता की आवश्यकता नहीं है। जिस राष्ट्र में विविध धर्मों और सम्प्रदायों के नागरिक रहते हो उस राष्ट्र में टकराव होना स्वाभवविक है। पर इन टकरावों सुलझाने के लिए किसी ऐसे नियम नहीं होने चहिये जो सभी वर्गों से ऊपर हो। और जिसका पालन हर वर्ग के लोग करे।
आज के इस समाज में कट्ट्टरट्ता की कोई जगह नहीं है। विकास की इस दौड़ में बने रहने के लिए अपने अंदर थोड़े से लचीलेपन की गुंजाईश रखनी चहिये क्यूंकि परिवर्तन विकसित समाज की बहुत बड़ी जरुरत है। बदलते समय के साथ समाज में व्याप्त कुछ कुरीतियों को ख़तम करते रहना चाहिए। मानवीय सिंद्धान्तो में बदलाव भी जरुरी हो जाता है।
हिन्दू धरम में व्याप्त कुरीतियों को समय समय पर ख़तम किया गया है। फिर वो चाहे अंग्रेजो के द्वारा कानून हो या भारत सरकार द्वारा लाए गए सुधारों को। सती प्रथा , बलि प्रथा , विधवा विवाह नियम या फिर चाहे पर्दा प्रथा। हिन्दू समाज ने इन बदलाओं को स्वीकार किया।
पर जैसे किसी कार को सड़क पर सफलता पूर्वक दौड़ते रहने के लिए उसके चारों पहियों का स्वस्थ होना आवश्यक है वैसे समाज रुपी कार को दौड़ते रहने के लिए उसके सभी पहियों का स्वस्थ व सही स्थिति में होना अति आवशयक है। अगर किसी एक पहिये को नया कर देने पे कार सफलता पूर्वक नहीं दौड़ेगी।
समान नागरिक सहिंता एक ऐसा जरिया जिसके द्वारा समाज के हर पहिये को स्वस्थ व नया रख सकते है जिससे समाज बिना किसी दुर्घटना के आगे बढ़ता रहे। हम इक्कीसवीं सदी में बाबा आदम के जमाने के नियमों को साथ लेकर नहीं चल सकते। उन्हें तो बदलना ही चाहिए।
और एक ऐसे नियम प्रणाली की जरुरत है जो आज के हिसाब से हो। एक ऐसी प्रणाली जिसमे महिलाओं का सम्मान हो , जिसमे हर वर्ग का ध्यान हो। हम आपसे में टकराहट को रोके और समान नागरिक संहिता को सफल बनाये।
बाबा साहेब अंबेडकर और नेहरू जी समान नागरिक सहिंता के पक्ष में थे। पर वो धीरे धीरे इसकी तरफ अग्रसर होना चाहते थे। हिन्दू कोड बिल समान नागरिक सहिंता की तरफ पहला कदम था। वो शायद समाज को इसके फायदे दिखाना चाह रहे होंगे जिनके आधार पर अन्य वर्गों को भी इन कानूनों के लिए राजी कर सके। तो एक तरह से आने वाली सरकारों की ये नैतिक जिम्मेदारी बन जाती है की जो सपना नेहरू जी और अंबेडकर जी ने देखा था उसको पूरा करें।
Relationship: a ship that sail you in sea of life
The word relationship is very deep in it. Relationship does not limited between two people or more that two people. It can be with yourself also that means how you treat yourself. There are two kind of person one who want to take positive from all the situations and try make himself happy and the other one is who is not satisfied in any situation that decide your relationship with yourself.
The relationship is all about how much you feel connected to the other person. How much the activity of other person is affecting you. Some time value of relationship can be measure on behalf of that how much you miss anyone rather than how you love are care anyone. It’s about how much you miss his/her talks, jokes, activities when he/she is not around you, and that feeling of missing sometimes becomes very important. It can redefine your relationship. You can reinvent yourself.
The relationship does not limit to humans only. You have a relationship with the beautiful nature around you. You see the sky full of stars in the night if that makes feels you happy then it is the kind of relationship that you have with beautiful nature. If the beauty of mountains fascinates you and the voice of flowing water gives a sense of relief to your eyes and the snowfall gives you the feeling of being out of this world then believe me you are in love with the beautiful nature.
Friendship should be the basis of all relationships. Because friendship gives you space of equality and equality is very important. Everyone wants to treat equally in a relationship and then only you share anything. You can share what you do not like about him/her without any fear or hesitation. Friendship ensures neither party is having the upper hand in the relationship. Mutual respect is a much-needed ingredient in any relationship because it will nurture the relationship and give new dimensions. If you see sandwich two pieces of bread are combined with a stuffing of vegetables between the bread. So without that stuffing, neither of the bread has any taste. So we have to stuff mutual respect in the same way.
In your life, you came across relationships that completely change your life. There is some relationship that will completely change you as a person in a positive manner and fill you with positivity inside you. Some relationships may not persist for a lifetime but those have their importance. Sometimes a relationship is not about a lifetime but yes but it has an impact on you.
Marriage
For everyone marriage have a very important place because it is going to connect not only the two-person but two families, two culture, or two thoughts. Both the person doesn’t have to same in nature or their thought process should be the same. The only important point is how much the scope of understanding. That understanding should be increased with time. There should be no place for making false assumptions and judgments about your partner based on anything, habit, or thoughts. Firstly you should keep yourself in that situation and then decide.
You should not simply marry because it is the correct time, or your family asking you to marry you should decide to marry when you think you found almost type of the person you wanted. So when I am saying almost type of the person then it means you cannot always be sure that what you wanted. Let me take an example.
Suppose you want to build your home. So what the steps you followed you simple create basic architecture of your home, then prepare base of your home, then walls will be ready and your first floor is ready so you are ready to live in it. Now modifications can be goes for lifetime. At some point of time you feel that ya it’s time to change the color of walls so you will fill desire color you want. At some point you feel that this is time for to build second floor of your dream house then you will build second floor.
But point is here you don’t have requirement of changing color of walls and building second floor initially. At the time requirement may rise to do modification then you perform.
So marriage is all about design the initial layout of your life plan and start living with it and then keep changing the color of walls of your life plan and build multiple floor building of your dreams together. You can not clear with whole picture at very early stage. May be what you think is important at some point become unreasonable at later stage of your life.
So for marriage a comfort level need to be established where both the party will have comfort to say what he really think about anything there should be not be scope of manipulation. The originality need to persist. Sometime both person wanted to give their best behavior to make the the right impression on partner and for that sometime they will compromise with the originality the natural nature. So if you are doing this then might be at that moment you are able to impress your partner but for you hide your original nature and a false assumption is created about you.
Why pre marriage talk is important but not necessary
So according to me you should talk your partner before marriage. This is not because you will know about each other but that will make your partner comfortable. A girl after marriage leaves her family. So obviously she will be nervous means she needs to live with a family totally unknow for her. There might be many questions in her mind, sense of insecurity , that feeling when she think people are ready to judge her at every step. At that time if you have good bond already and comfortable relationship then may be you can help her to settle the things faster and make her comfortable in environment.
What are the signs when you feel he or she is the one for you
When you feel a connection means what are you trying to convey he or she can understand and answer you accordingly. There is no place for ego. When he or she is okay with your weaknesses and you are comfortable enough to discuss weaknesses and shortcomings. When he or she will accept you with your weaknesses and you feel accompany of him/her will overcome your weaknesses.
When you feel your like and dislike are matter to him/her and you feel sense of adjustment from him/her. When the past doesn’t matter and both should be focus on current and future then it is good sign.
When he or she slightly start taking interest in your routine life and start sharing small things then it is good sign. When someone remember the things that you talk some days before and asking about those things so that somehow a place is created.
Savarkar and Gandhi assassination, know the real truth.
There is some assumption that Nathuram Godse who killed Gandhi Ji was linked to Veer Savarkar. As per the assumption, Godse was highly influenced by Veer Savarkar and a member of the political party “Hindu Mahasabha”.
Nowadays one who thinks this assumption is right gives some arguments in their favor.
- Nathuram Godse was a member of Hindu Mahasabha.
- It’s impossible that Veer Savarkar may know about Godse.
- Sardar Patel who is the home minister at that time also said that there is direct Savarkar involvement in this assassination.
- They also give the reference of Kapoor commission report.
Now let’s fold some history pages and go back to 1948. At that time Sardar Patel was a home minister and he was a member of a political party. This is the same as if our current home minister Amit Shah will release some statement about any incident. So we cannot see Sardar Patel’s statement in 1948 as proof from history. Also, we need to note one thing here the Court trial was not started when Sardar Patel gives this statement.
Birla House Incident
On 20 January 1948, 10 days before Gandhi Ji’s assassination there was a grenade attack on Gandhi Ji when he was at Birla’s house. Madanlal Pahwa was accused of this and sent to jail. Now the question is that why not the government increase the security of Gandhi Ji at that time. This assassination was failure of the system also. Nehru Ji and Patel Ji was equally responsible for this.
Red fort trial
A court trial was for more than a year but there was no proof of Savarkar’s involvement in this assassination. Veer Savarkar was acquitted of all the charges. No one has challenged the decision of the court. Sardar Patel, Nehru Ji, Ambedkar Ji everyone accepted the decision of the court.
There was an incident between Ambedkar Ji and Veer Savarkar’s advocate LB Bhoptkar. Ambedkar told Bhoptkar-
“There are no real charges against your client. Court hasn’t found anything. Patel also can’t go against the decision. You will win the case. “
Kapoor commission
In 1964, when the people involved in the Gandhi assassination came out after serving their respective sentences then some organization welcomes them. At that time, Bal Gangadhar Tilak’s grandson G V Ketkar made an unexpected announcement that he already knew about Nathuram Godse’s Gandhi murder plan.
When this news came in the newspapers, there was uproar. The public was speechless as there was always a blatant denial of any big conspiracy in Gandhi’s assassination.
For this reason, the government had to take immediate action. A ‘Pathak Commission’ was formed under the chairmanship of an MP. But after he became a minister, in 1966, the then Union Home Minister Gulzarilal Nanda appointed a retired Supreme Court judge under the Commission of Inquiry Act. This is called the Kapoor commission.
In that report, the commission was unable to present proof of Savarkar’s involvement in this. But commission refers to the term “Savrakride factor”. Even the commission did not call the two eyewitnesses at that time.
Kapoor commission report was junked by the government. And if Kapoor’s commission report was so reliable the why not Indira Gandhi take any action. Why does she not give importance to this report? Why she called Veer Savarkar as the remarkable son of India.
Amicus Curiae
In 2016, a petition was filed in the Supreme court of India that why the Kapoor commission assumes that Savarkar was involved in this. The Supreme court set Amicus Curiae on this. Court tells that there was no evidence that Savarkar was involved in this. There was no need for further probe in this.
You can read the court statement below-
https://main.sci.gov.in/supremecourt/2017/15103/15103_2017_Judgement_28-Mar-2018.pdf
So it is very easy to include Savarkar’s name in Mahatma Gandhi’s assassination. And when the red fort trial now supreme court said there was no evidence of Savarkar’s involvement then we need to consider this as the final verdict.
Some people say that there is historical evidence about Sarkar’s involvement. But question is that if evidence exists in reality why not any court finds them. Why not Nehru Ji and Patel Ji challenge this. Till now there are many governments come but why not present this historical evidence to the court.
If you wish to know more about Veer Savarkar please refer my blog on Veer Savarkar-https://www.writewingink.com/2021/10/18/veer-savarkar-the-man-of-courage-and-bravery/
Veer Savarkar : The forgotten hero of Indian freedom movement.
Vinayak Damodar Savarkar “Veer Savarkar”, a force related to Indian history and Indian freedom struggle, which some people consider as a hero, then there are some sections who have some objection to Veer Savarkar. But whether you believe in them or not, everyone will have to accept their influence in Indian history.
Before we talk about his contribution to Indian history, let us first know a little about him.
The great revolutionary Shri Veer Savarkar was born in Bhagur in the village of Nasik in 1883. Born in a normal family, Savarkar used to write poems along with reading and writing since childhood.
In 1902 he passed his matriculation examination and enrolled in B.A. at Fergusson College, Pune. Veer Savarkar started revolutionary activities from the time when neither Mahatma Gandhi was in India nor there was much talk of Subhas Chandra Bose.
In 1905, he lit Holi of foreign clothes in his own college as a protest against the partition of Bengal. After which he was expelled and fined Rs.10 in that time. And his articles were published in many magazines.
Savarkar was a great social reformer. Savarkar started the movement against untouchability before Babasaheb and Gandhi ji. Untouchability is one of the 7 prisoners who have surrounded the Hindu society.
Savarkar and the British rule
The British government considered Savarkar as its biggest enemy. The reason was also clear. After the revolt of 1857, the British established the Congress with the aim of eradicating any such revolution before it even started. He started groping the conscience of Indians on the pretext of Congress. And used the Congress for a direct dialogue between the British government and the people. But Savarkar was fully aware of this goal of the British.
He called the revolution of 1857, which was gradually being described as a sporadic military rebellion, as the first Indian freedom moment. In 1907, Veer Savarkar organized an event at India House in London to commemorate fifty years of the 1857 Revolution. And took this opportunity to the Indian public mind. He also wrote a book in 1857. He again instilled the feeling of patriotism in the Indian public mind.
Savarkar and the Cellular Jail
Savarkar was sent to the Cellular Jail in Andaman in 1911. It was nothing less than a hell. At that time when revolutionaries like Nehru ji and Gandhi ji were given special facilities in the jail by the British. They were given food of their choice. All means of contact with the outside world were given. Then only Savarkar was kept in that hell-like prison. It is obvious that the British government considered Savarkar as its biggest enemy.
In that prison, prisoners were kept in small rooms. There were fetters in the feet. Various types of torture were done. In a given time, 13.5 kg of mustard and coconut oil had to be extracted. And if that time limit was not met, he was beaten with whips. There was discrimination in prison. Food utensils were not clean. Half stomach food was available and some water. And this used to happen everyday. Savarkar endured all this for almost 10 years. But he did not lose courage.
Savarkar and mercy petition
At first it was not a plea for mercy. Today some people describe it as if Savarkar ji begged for mercy. From time to time, the British government used to make provision for mercy petition to free the prisoners in jails. It was a completely legal process. This mercy petition had a definite format.
Today some people have problem with its language that they had begged for mercy. But if you petition for mercy from any government or court, then you have to choose the same language. Even today we choose words like My Lord or Your Lordship in court. And you had to assure the present government of that time that you would not indulge in such activities in future.
Savarkar is not the first person who did this. When Nehru ji was imprisoned in Nabha jail, his father Motilal Nehru wrote a mercy petition to the governor that his son would not do such work in future and he would not even enter the border of Nabha again.
Shripad Amrit Dange, the founder of the CPI party, was also suffering from him in the Cellular Jail. He also wrote a mercy petition to the Governor General of India and chose words like your obedient servant in it.
So it does not mean that all those who filed mercy petition became slaves of the British. It was just a way to get out of there. Because it is better to do something for the country by coming out of jail than destroying your life by being imprisoned.
Savarkar was called Bada Babu by his companions in jail. Because he had come from London to study and was very educated and intelligent. He did not petition only for himself but did it for all along with him. He was the voice of those people and was working to free them from jail.
In a petition, he has also said that if you free me, I will be equally happy. And every time he and his brother were not released.
Savarkar after release
Many leftist historians say that there was a change in Savarkar after his release from jail. He was not active in the freedom movement and some people even talk of supporting him with the British. So let’s talk about this aspect. After his release from prison in 1924, Savarkar was placed under house arrest.
The British suspected that he had access to the revolutionaries and that he could again revolt against the government. He remained under house arrest till 1937. But he was constantly in touch with the revolutionaries and kept guiding them. And there is historical evidence for this.
In 1937, when the Congres formed the government, the ban on Savarkar was lifted. And at this time no such major national movement was going on. At that time Gandhiji was only holding the Round Table Conference.
Gandhiji started the Quit India Movement in 1942. However, the Congress President of that time also opposed it saying that it was done without any prior plan. Many people of Congress raised questions on the plan of this movement. However, within 3 months, Gandhiji withdrew this movement.
Savarkar and Congress
Savarkar was opposed to some policies of the Congress. Whether it is about the revolution of 1857 or the Muslim appeasement of Gandhiji. Savarkar supported the unity of the country. Many people including Gandhiji, Subhash Chandra Bose urged him to join the Congress, which he did not accept.
Savarkar and Netaji
Savarkar had a deep influence on Netaji. There was a meeting between Netaji and Savarkarji on 22 June 1940 and it lasted for more than 3 hours. In this, Savarkar suggested to Netaji that he should go out of the country and form an army and from there try for the independence of the country.
Netaji writes in one of his letters that –
“When every Congress leader is condemning the soldiers of Azad Hind Fauj as mercenary soldiers due to political misguidedness and lack of foresight, it gives immense pleasure to know that Veer Savarkar is fearlessly encouraging Indian youth to join the army. are constantly sending for.”
Savarkar and Mahatma Gandhi
Gandhiji called Savarkar brother. On the death of Savarkar’s brother, Gandhi wrote a letter to Savarkar and in that letter he consoled Savarkar by calling him his brother.
“Brother Savarkar, I am writing this after reading the news of your brother’s death. I did a little bit for his release and I’ve been interested in him ever since. Where do you need to console? We ourselves are in the jaws of death. I hope his family is fine. Yours, M.K. Gandhi”
Shaheed Bhagat Singh about Savrkar
Bhagat Singh said about Savarkar “He who loves this world is brave, whom we are not ashamed to call a fierce rebel and a staunch anarchist – this is Veer (brave) Savarkar”
Indira Gandhi about veer Savarkar
Indira Gandhi had issued a postage stamp for Savarkar. She addressed Savarkar as the Remarkable Son of India. I have received your letter dated 8 May 1980. Veer Savarkar’s courageous defiance of the British Government has its importance in the history of our freedom movement. I wish success to the plan to celebrate the birth centenary of the remarkable son of India.”
Today, even for some political reasons, some people are spreading wrong information about Savarkar. But Veer Savarkar will remain brave and his great legacy will continue to explain the importance of valor and freedom to the generations to come.
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वीर सावरकर और उनकी महान विरासत
विनायक दामोदर सावरकर “वीर सावरकर”, भारतीय इतिहास और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ी एक ऐसी शक्सियत जिन्हे कुछ लोग नायक मानते है तो वही कुछ वर्ग ऐसा भी है जिन्हे वीर सावरकर से कुछ आपत्ति है। पर आप चाहे उनको माने या न माने पर उनका जो प्रभाव भारतीय इतिहास में है उसको तो सबको मानना ही पड़ेगा।
इससे पहले की हम भारतीय इतिहास में उनके योगदान के बारे में बात करे सबसे पहले उनके बारे में थोड़ा जान लेते हैं।
१८८३ को नासिक के एक गांव में भगुर में जन्म हुआ महान क्रांतिकारी श्री वीर सावरकर का। एक सामान्य परिवार में जन्मे सावरकर बचपन से पढ़ने लिखने के साथ कविताएं लिखते थे।
१९०२ में उन्होंने मैट्रिक की परीक्षा पास की और पुणे के फर्गुसन कॉलेज में बी ए में दाखिला लिया। वीर सावरकर ने क्रांतिकारी गतिविधियां उस समय से आरंभ किया जिस समय न तो महत्मा गांधी भारत में थे और न ही सुभाष चंद्र बोस की इतनी बात होती थी।
१९०५ में उन्होंने बंगाल विभाजन के विरोध स्वरूप अपने ही कॉलेज में विदेशी कपड़ों की होली जलाई। जिसके बाद उन्हें निष्कासित कर दिया गया और उस समय में १० रुपए का जुर्माना लगाया गया। और कई पत्रिकाओं में उनके लेख छपते थे।
सावरकर एक महान समाज सुधारक थे। सावरकर बाबा साहेब और गांधी जी से पहले छुआ छूत के खिलाफ आंदोलन चलाया।उन्होंने हिंदू समाज को जिन ७ बंदियो ने घेरा हुआ है छुआछूत उनमें से एक है।
सावरकर और अंग्रेजी हुकूमत
सावरकर को अंग्रेज शासन अपना सबसे बड़ा दुश्मन मानता था।कारण भी साफ था। १८५७ की क्रांति के बाद अंग्रजों ने कांग्रेस की स्थापना इस उद्देश्य से किया की वो पुनः ऐसी कोई क्रांति को शुरू होने से पहले ही मिटा दे। उन्होंने कांग्रेस के बहाने भारतीयों के अंतरमन को टटोलना प्रारंभ किया। और अंग्रेजी हुकूमत और जनता के बीच सीधा संवाद के लिए कांग्रेस का इस्तेमाल किया।पर सावरकर अंग्रजों के इस मकसत से पूर्णतया अवगत थे।
उन्होंने १८५७ की क्रांति जिसको धीरे धीरे एक छुटपुट सैनिक विद्रोह बताया जाने लगा था उसको उन्होंने प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की संज्ञा दी। १९०७ में वीर सावरकर ने लंदन स्थित इंडिया हाउस में १८५७ की क्रांति के पचास वर्ष पूर्ण होने के उपलक्ष्य में एक आयोजन किया। और इस मौके को भारतीय जन मानस तक पहुंचाया। उन्होंने १८५७ पे एक किताब भी लिखी। उन्होंने भारतीय जन मानस में फिर से देश प्रेम की भावना जगाई।
सावरकर और सेल्यूलर जेल
सावरकर को १९११ में अंडमान स्थित सेल्यूलर जेल भेज दिया गया। वह किसी नरक से कम नहीं थी। उस समय जब नेहरू जी और गांधी जी जैसे क्रांतिकारियों अंग्रेजों द्वारा जेल में विशेष सुविधाएं दी जाती थी। उनसे उनका मन पसंद खाना दिया जाता। बाहरी दुनिया से संपर्क के सारे साधन दिए जाते थे।तब सिर्फ सावरकर को उस नरक जैसी जेल में रखा गया। जाहिर सी बात है ब्रिटिश सरकार सावरकर को अपना सबसे बड़ा शत्रु मानती थी।
उस जेल में छोटे छोटे कमरों में कैदियों को रखा जाता था। पैरो में बेड़ियां पड़ी होती थी। तरह तरह की यातनाएं दी जाती थी।एक निश्चित समय में १३.५ किलो सरसो और नारियल से तेल निकालना पड़ता था। और अगर वो समय सीमा पूरी न हो तो कोड़ों से मारा जाता था। जेल में भेदभाव होता था। खाने के बर्तन साफ नहीं होते थे। आधा पेट खाना मिलता था और थोड़ा पानी। और ये रोज होता था। सावरकर ने ये सब लगभग १० साल तक सहा। पर उन्होंने हिम्मत नही हारी। दिनभर यातनाएं सहने के बाद शाम में वो जेल की दीवारों में पत्थरों से कविताएं लिखा करते थे।
सावरकर और दया अर्जी
सबसे पहले तो ये कोई दया की याचना नही थी। आज कुछ लोग इसको ऐसे वर्णित करते है जैसे सावरकर जी दया की भीख मांगी हो। समय समय पे अंग्रेजी सरकार जेलों में बंद कैदियों को मुक्त करने के लिए दया याचिका का प्रावधान करती थी। यह पूरी तरह से कानूनी प्रक्रिया होती थी। इस दया याचिका का एक निश्चित प्रारूप होता था।
आज कुछ लोगों को इसकी भाषा से समस्या है की उन्होंने तो दया की भीख मांगी थी। पर अगर आप किसी सरकार या कोर्ट से दया की याचिका करते है तो आपको वैसी ही भाषा का चुनाव करना होता है। आज भी हम कोर्ट में माई लॉर्ड या योर लॉर्डशिप जैसे शब्दों का चुनाव करते है। और आपको उस वक्त की मौजूदा सरकार को यह भरोसा दिलाना होता था की आप भविष्य में ऐसी गतिविधियों में सम्मलित नही होंगे।
सावरकर पहले व्यक्ति नही है जिन्होंने ऐसा किया। जब नेहरू जी को नाभा जेल में बंद किया गया तो उनके पिता मोतीलाल नेहरू ने गवर्नर को दया याचिका लिखी की उनका पुत्र भविष्य में ऐसा काम नही करेगा और वह पुनः नाभा की सीमा में प्रवेश तक नही करेगा।
सी पी आई पार्टी के संस्थापक श्रीपद अमृत डांगे भी उस से सेल्यूलर जेल में यातनाएं सह रहे थे। उन्होंने भी गवर्नर जनरल ऑफ इंडिया को दया याचिका लिखी और उसमे योर ओबिडिएंट सर्वेंट इन जैसे शब्दों का चुनाव किया।
तो इसका मतलब यह नहीं जिन लोगो ने दया याचिका डाली वह सब अंग्रजों के गुलाम हो गए। वह सिर्फ एक जरिया था वहा से बाहर निकलने का। क्यूंकि जेल में बंद होकर अपना जीवन नष्ट करने से कहीं बेहतर है की जेल से बाहर आकर देश के लिए कुछ किया जाए।
सावरकर को जेल में उनके साथी बड़ा बाबू कहते थे। क्योंकि वे लंदन से पढ़ के आए थे और काफी पढ़े लिखे और समझदार थे।उन्होंने केवल अपने लिए ही याचिका दायर नही की अपितु अपने साथ सब के लिए किया। वह उन लोगों की आवाज थे और उन लोगों को जेल से मुक्त करने के लिए कार्यरत थे।
एक याचिका में उन्होंने यह भी कहा है की आप मुझे न सही पर मेरे साथियों को मुक्त कर दीजिए मुझे उतनी ही खुशी होगी। और हर बार उनको और उनके भाई को रिहा नही किया जाता था।
रिहाई के बाद सावरकर
कई वामपंथी इतिहासकार ये कहते है की जेल से रिहा होने के बाद सावरकर में एक परिवर्तन आ गया था। वह स्वंत्रता आंदोलन में सक्रिय नही थे और कुछ लोग तो उनको अंग्रेजों का साथ देने की बात भी कहते हैं। तो आइए इस पहलू पर बात करते है। १९२४ में जेल से रिहा होने के बाद सावरकर को नजरबंद कर दिया गया।
अंग्रजों को शक था उनकी पहुंच क्रांतिकारियों तक थी और वह पुनः सरकार के खिलाफ विद्रोह करा सकते थे।१९३७ तक वह नजरबंद रहे। पर लगातार क्रांतिकारियों के संपर्क में थे और उनका मार्गदर्शन करते रहे। और इस बात के ऐतिहासिक साक्ष्य मौजूद हैं। १९३७ में जब कांग्रेस ने kसरकार बनाई तब सावरकर से प्रतिबंध हटाया गया। और इस वक्त ऐसा कोई बड़ा राष्ट्रीय आंदोलन नही चल रहा था। उस वक्त गांधी जी केवल गोलमेज सम्मेलन कर रहे थे।
१९४२ में गांधी जी ने भारत छोड़ों आंदोलन की शुरुवात किया।हालाकि जिसका विरोध उस समय के कांग्रेस अध्यक्ष ने भी ये कहकर किया की ये बिना किसी पूर्व योजना के किया गया है।कांग्रेस के कई लोगों ने इस आंदोलन की योजना पे सवाल खड़े किए। हालाकि ३ महीने में गांधी जी ने इस आंदोलन को वापस ले लिया।
सावरकर और कांग्रेस
सावरकर कांग्रेस की कुछ नीतियों के विरोधी रहे। चाहे वो १८५७ की क्रांति को लेकर हो या गांधी जी के मुस्लिम तुष्टिकरण को लेकर। सावरकर ने देश की एकता का समर्थन किया। गांधी जी, सुभाष चंद्र बोस समेत कई लोगों ने उनको कांग्रेस से जुड़ने का आग्रह किया जिसको उन्होंने स्वीकार नही किया।
सावरकर और नेता जी
नेता जी पर सावरकर का गहरा प्रभाव था। २२ जून १९४० में नेता जी और सावरकर जी के बीच एक बैठक हुई और यह ३ घंटे से ज्यादा चली। इसमें सावरकर ने नेता जी को यह सुझाव दिया की वो देश से बाहर जाकर सेना का गठन करें और वही से देश की आजादी के लिए प्रयास करें ।
नेता जी अपने एक पत्र में लिखते है कि –
“जब राजनैतिक गुमराही और दूरदर्शिता की कमी के कारण कांग्रेस का हर नेता आज़ाद हिंद फौज के जवानों को भाड़े का सिपाही कह कर निंदित कर रहा है ऐसे में यह जानकर आपार खुशी हो रही है की वीर सावरकर निर्भयता पूर्वक भारतीय युवाओं को फौज में शामिल होने के लिए लगतार भेज रहे हैं।”
वाकए तो कई है पर उसपे मैं अलग से एक लेख लिखूंगा।
सावरकर और महात्मा गांधी
गांधी जी सावरकर को भाई कहते थे। सावरकर के भाई के मृत्यु पे गांधी जी ने सावरकर को चिट्ठी लिखा और उस चिट्ठी में उन्होंने सावरकर को भाई कहकर ढांढस बंधाया था।
“भाई सावरकर, मैं यह आपके भाई की मृत्यु की खबर पढ़कर लिख रहा हूं। मैंने उसकी रिहाई के लिए थोड़ा बहुत किया था और जब से मैं उसमें दिलचस्पी ले रहा था। आपको सांत्वना देने की जरूरत कहां है? हम खुद मौत के जबड़े में हैं। मुझे उम्मीद है कि उनका परिवार ठीक है। आपका, एम.के. गांधी”
सावरकर और शहीद भगत सिंह
सावरकर के बारे में भगत सिंह ने कहा था “जो इस दुनिया से प्यार करता है वह बहादुर है, जिसे हम एक उग्र विद्रोही और कट्टर अराजकतावादी कहने में शर्म महसूस नहीं करते – यह वीर (बहादुर) सावरकर है”
इंदिरा गांधी ने सावरकर के लिए डाक टिकट जारी कराया था।उन्होंने सावरकर को रिमार्केबल सन ऑफ इंडिया कह कर संबोधित किया।”मुझे आपका ८ मई १९८० का पत्र मिला है। वीर सावरकर की ब्रिटिश सरकार की साहसी अवज्ञा का हमारे स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास में अपना महत्व है। मैं भारत के उल्लेखनीय सपूत की जन्मशती मनाने की योजना की सफलता की कामना करती हूं”
आज कुछ राजनैतिक कारणों से भले ही सावरकर के बारे में कुछ लोग गलत जानकारियां फैला रहे है। पर वीर सावरकर वीर ही रहेंगे और उनकी महान विरासत आने वाले पीढ़ियों को वीरता और आजादी का महत्व समझाती रहेगी।
Need to change the perspective about private job in India
When we start studying in childhood, we are told only one purpose of studying that if we study well, we will get a good government job. I am not saying bad government job here. Just want to talk about a mindset of the society which I have realized.
It would have been a good thing if everyone could get a government job after studying and writing. But this cannot happen. Day by day the number of government jobs is decreasing and the number of those preparing for government jobs is increasing by doubling and quadrupling.
Now it is obvious that all the people kept from getting government jobs. But today why people do not look at private jobs from the point of view of success. This is not the fault of the people. In our society, success is understood to mean only a government job. One has to work very hard to get a government job, so it is obvious that those who get government jobs will be called successful.
But this should not at all mean that those in private jobs should be considered unsuccessful. People who work in a private firm by doing engineering or diploma and many times earn better money than a government job, but the society calls them a failure.
Every time they get to hear this from their family members or relatives that let’s not get a government job, but this is also fine. Is our ultimate goal only government jobs.
Although it is not right to compare but I want to share with you what happened to me. In a private company, if someone is earning more than one lakh rupees in a month, but he is unsuccessful, but a government job of fifty thousand is considered successful in comparison to him.
90% of the people working in India are working in the private sector. So should we consider 90% of the people as failures? The only facility that is not there in a private job is job security. But I believe that if a company has millions of people in line for jobs, then there are thousands of companies for an employee to do their jobs.
If I talk only about the IT sector, then this sector is so big that everyone gets jobs in it. Rest depends on your talent and your dedication. Yes, there is one thing that there is no private job at all for people who like comfort.
Today we need to change our attitude. Just like cold means Coca Cola, studies mean government job, just we have to change this thinking. Because the person doing private job is also successful, he is also earning money. Paying taxes and living a good life.
Man chooses government so that he can lead a good life. Good food, house, car. You can accomplish all this very well with a good private job.
Reason why we need to choose private job
- There are lot of opportunities in private sector.
- One can get job in private sector in short span of time as compare to government job.
- One can earn good salary if he/she have talent and upgrade himself/herself with market standard.
- Many companies want to invest in India and want to utilize the talent.
- Currently India have highest percentage of youth as compare to other countries so all big companies want to hire young talented Indian for their requirements.
- Make In India program enabled many foreign counties to invest in India and hence many new opportunities will be created.
In this pandemic situation IT sector hiring reaches his peak.
In last 5 year IT sector have created more than 8 lakh new jobs.
Also please read our article on Tata airline.
How Air India can re grow under Tata.
Tata and Sons won the bid of Air India. Tata and sons bids 18 thousands crore. Spice jet bids more than 15 thousands crore at second place. Tata has already share in other air line. Tata owns 51 percent share Vistara air line and 84 percent share of Air Asia.
Now let us look current situation of Indian aviation industry.
Currently Indigo is biggest player in Indian aviation industry having 57.6 percent market share. Spice jet has 8.9 percent. Air India has 13.3 percent market share and Vistara and Air Asia has 4.4 percent of market share. Go First formerly known as Go Air has 6.8 percent market share.
So after the Air India privatization Tata group has market share of more than 25 percent.
Government has spends one lakh crore rupees on Air India in last 10 years. But the loss of Air India is 25 crore rupees per day. So the question is that why Tata has bid the Air India. How Tata will convert it into profit making venture. This is the biggest question now. We will answer it in details. If you read the whole blog you will find the answer.
As now Air India has in private hand so it will raise the coemption between existing air lines. Tata will surely give better services to customers to regain their customer base. They will surely improve the services like fooding, boarding and hospitality comfortable seats , cleaning same as other private air line. Tata will surely add new services and benefits to their passengers.
Now surely one question will arise that will Tata raise the fare of domestic flight? Answer is no as fare of domestic flight is manage by DGCA(Directorate General of Civil Aviation) which is government organization. But surely in services we can see improvement.
Government plays very significant role in this privatization. We all know that Air India was in massive debt. Also this is pandemic time where other air line facing tough time as their business directly impacted. There was the time when flights were cancelled. And in these conditions disinvestment of Air India is surely a good step. Now tax payers money will not spent on Air India.
Air India’s flights to all existing routes are remains unchanged and might be some other new routes will be added. There is government program called “UDAN” so all the flights which comes under this program will remain unaffected.
Currently Air India has more than 10 thousands employees. Tata group need to retain all the employees for one year and after that it can give VRS to some employee. All the other employee benefits like provident fund(P.F.), medical benefits, gratuity and all other benefits remains same and considered to be part of Tata group.
Ratan Tata shared welcome note for Air India on October 8, 2021 on his twitter account.
We all hope that Air India will bring back old glory and reaches the new height of success. Also we all hope that Tata will provide world class facility and services to the passengers.
All you need to know about air India privatization
Now days Air India becomes point of discussion as it’s ownership again move to Tata and Sons. So what was the reason behind privatization of Air India. Why it becomes biggest debt for Indian government year by year. The Airline which is roll model for Singapore Airline in 70s and become biggest profit point. So what happened to Air India. First let us see the history of Air India.
History of Air India
In 1932, India’s businessman JRD Tata started his airline Tata Airmail for the distribution of letters. On 15 October 1932 Tata Airmail take his first flight from Karachi to Mumbai. JRD Tata was one of the pilot of this flight. JRD Tata was India’s first Civil aviation pilot.
In first year Tata air mail earns 60 thousand profit by distributing 10 ton letters and by traveling of 155 passengers. In 1938 Tata Airmail rename to Tata Airline.
After second world war JRD senses that airline business can grow more. He open airline to public in 1946 and rename this to Air India. Tata has also sign contract with Indian government for International flight. Tata also focuses to modernize his venture with latest air craft carrier and equipment.
Tata include his world class carrier Lockheed constellation and name this to Malabar Princess. On 8th June 1948 Air India took his first international flight from Mumbai to London. Its fare at that time was 1720 rs.
1953 Indian government produced air corporation act to nationalize airline industry. So now Air India comes under the Indian government. JRD Tata was appointed chairman of Air India. Air India was very close to heart of JRD Tata. He take care this well. He focuses on all the facility in aircraft including food, seats, curtains etc. That is the reason in Air India reaches his peak under the supervision of Tata group.
Downfall of Air India
All was going well but in 1978 Indian government at that time prime minister was Morarji Desai removed JRD Tata as chairman of Air India. Mr. Desai was against the serving liquor in airline. But according to Tata in international flight it is good service to customers.
The decision of removal of JRD Tata as chairman proved wrong as after that service quality of Air India decreases so in the overall growth of Air India. Although Indira Gandhi once again included JRD Tata in board of director of Air India but till then it becomes late. After that downfall of Air India started. There are multiple reason behind this.
- Over staffing in Air Line
- Lack of maintenance
- Less attention in services
- Lack of upgrade.
In 2002-03 under Bajpai led NDA government Air India was in profit of 133 crore. And Air India was in profit under the initial year of Manmohan Singh led UPA government.
Actual downfall started.
There was some decisions made by civil aviation minister Praful Patel might caused the problems. Purchase of several air crafts without proper analysis of requirements. Also several profit making flights were stopped.
In 2007, Prime minister Manmohan Singh told that debt of Air India and Indian Airline was 541 cr and 240 Cr.
Total employee was 3000 including Air India and Indian Airlines.
Which was 256 employee per plan and as per international standard it was 100 employee per plane.
Story of debt continue. In 2014 total debt was 26033.
https://www.financialexpress.com/archive/air-indias-outstanding-debt-a-whopping-rs-26033-cr/1223775/
As per article in 2010 in economic time Air India demands 2000 crore to repay debts.
There was time when Air India sold his three air craft.
In 2011-12 Air India was in loss of 7853 crores. Civil aviation minister Ajit Singh told this.
Privatization of Air India is not new. Minister at that time Ajit Singh also suggested to privatized the Air India in 2013.
Ajit Singh says political consensus needed to privatise Air India – India News (indiatoday.in)
At that time government refrain himself from doing this and forward it to upcoming government.
Now current government has privatized the Air India and highest bidder is Tata and Sons. So finally Air India has owned by his old care takers. One can say that under government supervision Air India quality was not same as before as government as so many things to manage.
Now we hope that Air India once again reach his peak of success and provide us world class aviation services.
Please read another article on this https://www.writewingink.com/2021/10/10/tata-says-hello-to-air-india-effect-of-air-india-privatization-on-common-man-current-picture-of-indian-aviation-industry/